साणाजिक विषयो पर कविता - आजादी
आजाद इंसान क्यों दिखता नहीं मुझे इस जहान में,
आजाद तो ये हवा हे, जो एक ही तो है तेरे वतन और मेरे वतन में।
आजाद तो ये नदी है, जिसकी हर प्यासे को तलास है,
तेरे वतन में और मेरे वतन में।
आजाद तो हे ये सुगंध फूलो की,
जो एक सी हे, माली के लिए भी और मालिक के लिए भी।
आजाद हे ये पंख फैलाये हुए परिंदे,
जो हर रोज चहकते हे, हमारे चमन में।
आजाद हर वो चीज हे, जो करती नहीं भेद-भाव है,
जिस पर पाबंदी नहीं हे, मजहब, सरहद या रंग-बोली की,
आजाद वो हे, जो अपनो का भी है, और सब का भी हे अपना।
सभी को 70वे स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ।
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