Poem in Garhwali ( गढवाली बोली में कविता)- प्रीत की मार
कदगी तेज भागी मी यन ऊँचा-नीचा बाटों बै,
फाल मारी मिल हमारा ऊँचा बाड़ा बे,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
अब यन न देख तू म्यारा फाटया सुलार ते,
हक-बक मा फसी छो मी कुँजी का बीच मा,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
यन नजर से ना देख मैते,
माना आज नी दिखणू छो मी मनखी जन,
रात ज्यादा लगेली छे मीलयो मिन,
और भीड़गी छो 2-4 नौनो संग।
पर ते मिलड़ आयूँ ची मी,ये बन्द नीली आँखी मा।
मी नी छो तेरो बाबू को हल्या,
फिर किले बिठायूँ मैंते ये डीप धार मा।
संग बैठ, कुछ गप लड़ो ये बीचली धार मा।
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
यती उधभरी भी कभी न छो मी,
पर न जाड़ी ग्रहो की क्या कुचाल चली,
सिदा बाटा औणू छौ मी, न जाड़ी कनके ढसाक लगी।
माना की कुछ दोष यन धूपी चश्मों को भी छो,
जूँ रुमकी बगत भी लगयाँ छा,
पर पिछली शनिवार किले बोली तेन, य्ँ में पा जचणा छा।
अब ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी, ये टूटया चश्मा ते खिशा मा लगेके।
हाकी बार औंण से पैली मिल दिन दिखोण,
आज त मी फँसी रम की बास मा, हाकी बार मिल वोडका लगोंण।
जरा ता भाव दे छोरी, आयूँची ये दूर धार मा,
जु नी होंण छो मी दगड़ी, सब कुछ ह्वेगी ये बार मा।
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
छवाड़ के ये नखरा अपड़ा जरा प्रीत दिखे दे।
फाल मारी मिल हमारा ऊँचा बाड़ा बे,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
अब यन न देख तू म्यारा फाटया सुलार ते,
हक-बक मा फसी छो मी कुँजी का बीच मा,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
यन नजर से ना देख मैते,
माना आज नी दिखणू छो मी मनखी जन,
रात ज्यादा लगेली छे मीलयो मिन,
और भीड़गी छो 2-4 नौनो संग।
पर ते मिलड़ आयूँ ची मी,ये बन्द नीली आँखी मा।
मी नी छो तेरो बाबू को हल्या,
फिर किले बिठायूँ मैंते ये डीप धार मा।
संग बैठ, कुछ गप लड़ो ये बीचली धार मा।
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
यती उधभरी भी कभी न छो मी,
पर न जाड़ी ग्रहो की क्या कुचाल चली,
सिदा बाटा औणू छौ मी, न जाड़ी कनके ढसाक लगी।
माना की कुछ दोष यन धूपी चश्मों को भी छो,
जूँ रुमकी बगत भी लगयाँ छा,
पर पिछली शनिवार किले बोली तेन, य्ँ में पा जचणा छा।
अब ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी, ये टूटया चश्मा ते खिशा मा लगेके।
हाकी बार औंण से पैली मिल दिन दिखोण,
आज त मी फँसी रम की बास मा, हाकी बार मिल वोडका लगोंण।
जरा ता भाव दे छोरी, आयूँची ये दूर धार मा,
जु नी होंण छो मी दगड़ी, सब कुछ ह्वेगी ये बार मा।
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
छवाड़ के ये नखरा अपड़ा जरा प्रीत दिखे दे।
इस Blog की सभी कविताएँ स्वरचित है, यदि आप कोई भी हिन्दी या गढवाली कविता का उपयोग करना चाहते हैं तो हमारी अनुमती अवश्यक है। इस Garhwali रचना को पढने के लिए धन्यवाद। Garhwali, Uttarakhand में बोली जाने बाली एक बोली है, जोकी हिन्दी की तरहा ही लिखि व पढी जाती है।
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