मेरा खून खोल जाता है,
जब भी मेरी जमी पर कोई वारदात होती है।
दो दिन तो मैं कहता हूँ,
मैं फिक्रमंद हूँ इस सर जमी का।
फिर दिन बीते, महिने बीते,
करने लगा फिर में राजनीति।
मेरा ना कोई धर्म है, ना हे जाति,
अब मानवता भी मर गयी हे मेरी।
मुझे फायदे दिखते हे मेरे,
ये शहादतो पर मोन होना तो मेरी मजबूरी है।
मुझे फर्क नहीं पड़ता, किसान क्यों हे मरते,
ये सुखा, ये बाढ क्यों हे आती।
मुझे तो मंच हे मिल जाता,
जब भी कोई खबर हे आती।
मुझसे उम्मीद लगाने वाले की हे गलती,
क्यों तुम मुझे 70 सालो में न समझे।
मुझे सिर्फ वोट से हे मतलब,
बाकि सब बेवफाई हे।
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