पाँच साल में आता है,
ये चुनाव का मौका हर रोज नहीं आता है।
कुछ समझ को बढाओ, मेरे समझदारों,
इन नेताओं को इनका असली चेहरा दिखाने का मौका रोज नहीं आता।
जब ये आये कैमरों के संग घर रोटी खाने,
तो इनकी एक थाली की कीमत जान लेना।
जब ये दे मुफ्त की चीजे,
तो किसकी जेब खाली की ये पूछ लेना।
हर रोज ये दिन आयेगा नहीं,
लगे हाथों कितना पढे़ं हे, ये भी जान लेना।
जो ये बैठ जाये जमी पर,
तो इनसे इस की कीमत जान लेना।
और भी तो बहुत बाते होंगी तेरे मन में,
आज तेरा दिन हे, हर तरफ से इनको टटोल लेना।
फिर पाँच साल का वनवास हे बाबू,
इस बार किसी राम के हाथों ही राज्य सौंप देना।
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