क्या सच में अपने चाहने वालों से
प्यार जाहिर करने का कोई त्यौहार होता है!
क्या यह मुमकिन है कि एक दिन बाहों में भरने का,
और एक इजहार करने का पहले से मुकर्रर होता है?
क्यों बस प्यार एक हफ्ते ही सबकी जुबान पर होता है,
क्या जो सबको दिखाया जाए वहीं बस प्यार होता है,
कैसे एक प्याली कॉफी के पीने से प्यार पुख्ता होता है,
कैसे सिनेमाहॉल में चुप बैठे रहने से यह प्यार आगे बढ़ता है?
छलकते जाम और धूए मैं धुंधली शाम,
जहां पर शोर सबसे ज्यादा होता है,
ऐसे में जो बातें की उससे क्या एतबार बढ़ता है?
मुहब्बत तो एक आजाद ख्याल है,
मैं इसको कैसे चंद दिनों में बांट लूं।
मुहब्बत तो दिल का सच्चा जज्बात है,
मैं कैसे इसे वेलेंटाइन डे में बांध लूं।
Really very well said SIR.
ReplyDeleteBeautifully written about the true love.
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