जिन्दगी बस बढ तो रही थी,
बहानो ही बहानो में,
पसीना न बह जाये,
ख्यालो ही ख्यालो में।
दुनिया बदलने ही तो वाली थी,
सपनो के आयने में,
एक छोटी सी ठोकर,
जमी पर हमको ले आयी।
खड़ा था घर के आँगन में,
सामने मेरी परछायी थी,
दिन चढ चुका था,
ख्यालो की बुनायी में।
इस दिल को समझाना,
कहाँ आसान होता है,
जब भी चुप बैठो,
ये खुद ही जाग जाता है.
आशा है, निराशा है,
ये अरमानो के दो पहलु है,
बनायी जिसने ये दुनिया है,
उसे बस कर्म भाता है।
ना आशा हो कर्म फल की,
न निराशा हो असफलता की,
स्वपन को लक्ष्य में बदलो,
बहानो को कर्म से बदलो।
मिला जो एक अवसर है,
उस अवसर को स्वर्ण में बदलो,
आये हो धरा पर तो,
धरा को स्वर्ग में बदलो।
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