अधर्म चाहे बलवान हो,
या धनवान,
या रावण जैसा सामर्थवान,
हर युग में आता है कोई राम सा,
सरलता जिसकी हो पहचान,
न किसी बात का हो अभिमान,
मर्यादाओं का हो जिनको ज्ञान।
हर युग में संग ही चलते हैं,
कभी धर्म प्रबल तो,
कभी अधर्म प्रबल।
अधर्म बलशाली जब हो जाता है,
तब हर युग में आ जाते हैं कोई बनकर राम,
कर देता है अन्त अधर्म का,
और बन जाता है वहाँ भगवान।
सभी पाठकों को दशहरा (विजयादशमी) की शुभकाभनाएँ।
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