वो यादें जो ताउम्र,
दिल में घर कर जाती हैं।
उम्र बढती रहती है,
पर नजर वहीं रह जाती है।
जब भी आगे बढता हूँ,
वह मुझ पर पीछे से हँसता रहता है।
यह जो मेरा बचपन है,
हर पल मुझसे यूँ ही जुङा रहता है।
चिढाता है मुझको,
यह में क्या बन गया हूँ।
हँसता है मुझ पर,
यह मैं क्या कर रहा हूँ।
होती है सुबह, जाता हूँ ऑफिस।
तारों की छांव में आता हूँ घर को।
बस यूँ ही वक्त मेरा
गुजरता है जाता।
न वो बचपन का हँसना,
न वो खुल के रोना।
कल बेहतर होगा,
यही सोचता था।
जल्दी बढू में,
यही सोचता था।
सब कुछ हुआ वो
जो मैं चाहता था।
पर खुशीयाँ मुझे वो
फिर मिल ना पायी।
वो बचपन की मस्ती,
वो सकून और रवानी।
याद आती है मुझको,
वो भूली-बिसरी कहाॅनी।
याद आती है मुझको,
वो भूली-बिसरी कहाॅनी।
बचपन की यादें , बचपन के खेल और दोस्तो के किस्से, न जाने ऐसे कितने एहसास हैं जिन पर मौलिक कविताएँ लिखि जा सकती है। निचे कुछ और हमारी स्वरचित हिन्दी कविताएँ बचपन पर हैं, आपको पढकर जरूर अनन्द की अनुभूती मिलेगी।
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