जब भी देखता हूँ तुम्हें,
अपने बचपन में खो जाता हूँ।
जो याद नही बातें,
तुम्हें देखकर वो यादें बनाता हूँ।
जब सीखा था तुमने चलना,
मैं अब कुछ वैसा ही लङखङाता हूँ।
जैसे हँसते हो तुम हरदम,
वैसे ही सामने दर्पण के मैं भी हँसता रहता हूँ।
सोचता हूँ सब कुछ ऐसा ही रहा होगा,
जैसा तुमको करते देखता हूँ।
जो बातें तुमको शायद याद न रहे,
उनको कैमरे में कैद करता रहता हूँ।
नौनीहाल होना कितना सुकुन भरा होता है,
फिरसे तुम जैसा काश मैं बन पाऊ।
तुम रोते हो, कभी गुस्सा होते हो,
फिर एक पल में भूलकर सब,
सीने से मेरे लग जाते हो।
हर पल प्यार जताते हो,
जो याद नहीं मुझको,
मुझे वो सब खुली आँखों से हर रोज हमें दिखाते हो।
Childhood Memories, Childhood Play और दोस्तो के किस्से, न जाने ऐसे कितने एहसास हैं जिन पर मौलिक कविताएँ लिखि जा सकती है। निचे कुछ और हमारी स्वरचित हिन्दी कविताएँ बचपन (Hindi Poem on Childhood)पर हैं, आपको पढकर जरूर अनन्द की अनुभूती मिलेगी।
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