हमारे गाँवों के जीवन, रहन-सहन, बचपन के खेलों व गाँव में बितायी जिंदगी के अनुभवों पर हिन्दी कविता
Hindi Kavita on Life of Village | गाँव के जीवन पर रोचक कविता
मेरा गाँव बिल्कुल नही है शहरों जैसा,
मेरा गाँव बिल्कुल नही है अब पहले जैसा,
सड़को पर चलती थी,
कुछ ही मोटर गाड़ी,
आवाज से ही पहचान लेते थे,
आ रही है किसकी गाड़ी।
स्कूल दूर थे,
पर परवाह किसको थी,
घर लौटते वक्त तो,
पल्क छपकते ही खाने की रसोई में होते।
बात इतनें में कहाँ रूकती है, मेरे गाँव की
सुरख मिट्टी जब पूरे बदन पर लिपट जाती,
शाम ढल कर रात बन जाती,
खेल तब तक जाते थे खेले।
ऐसा था मेरा गाँव।
मंगरो से पानी लाना,
और आधे-अधूरे मन से राहगीरो को पिलाना,
घर पहुँच कर आधे भरे डब्बो को चुपके से सरका देना,
जहाँ होता था ये सब, वह हे मेरा गाँव।
रास्ते पक्के थे, कच्चे थे,
कुछ उच्चे, कुछ नीचे थे,
किसको फर्क पड़ता था,
हमको तब बचपन के पंख लगे थे।
वह कौन सा खेत, कौन सा चौक रहा होगा,
जिसको छोड़ा हो हमारे अतरंगे खेल खिलौनों ने,
लाखो बातें सुनकर, सब कुछ अपने में समेट लेना,
जहाँ मन में नही था कोई बैर, वह हे मेरा गाँव।
शाखों पर कोपल आते,
और फिर फूलो से लदी हरी शाखाएँ लहराती,
बारिस होती, और अगले दिन तक पत्ते टिप-टिप पानी बरसाते,
और फिर पत्ते नीचे गिर मिट्टी बन जातें,
जहाँ दिख जाती थी, सारी ऋतुएँ
वह हे मेरा गाँव।
जीवन मानों प्रकृति की देन थी,
हम सबको इसका एहसास भी था,
जहाँ हर बात का जुदा अंदाज था,
वही तो मेरा गाँव था.
वही तो मेरा गाँव था।
गाँव में जीवन बिताना एक बहुत ही खास अनुभव होता है, गााँव में जीवन शहरो की भाग-दौड़ से बहुत दूर व नेचर के बहुत पास होता हैं। ऐसे ही अनुभवों को समेटें यह कविता यदि आपको पसंद आती है, तो कमेंट बॉक्स में ्अपने विचार जरुर शेयर करे।
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