Garhwali Poem(गढवाली कवित) - फूल छो जू सबसे प्यारू
मेरा गौ का डांडी काठ्र्यों को हयू गोयी गे,
हवा जु लगङी छे पेली अती सुर-सुरी,
वू भी व्हेगी छे जरा अब गुन-गुनी।
ऐगी छे पंचमी बसंत की,
हर तरफ सारयो मा फ्यूली खिली गेनी।
मी बी हरची गी मेरा बालापन मा,
याद ऐगी फूल वू, जु छो अति पसंद मीतें
द्वी डायी छे घोर मू चोक का ओर पोर,
लगदा छां जे पर अति सवादी फल।
जने ह्यून लगनु छो,
डाली मुरझे जानी।
जने यू बसंत आयी,
तने फिर खिल जानी।
कोपल आयी, हर तरफ हरियाली छायी,
फिर दिखण बैठीगे यू स्वाणी कलियाँ ।
यू फूल छो मेंतें सबसे प्यारो,
हिवांयी जन रंग च,
कानों की बाली जन दिखण मा,
खुशबु वेगी अति भली,
सुन्दरता भरमान्दी छे।
वू छे डायी ओरू की,
जू लदी गे छव्टा छव्टा फूलों से।
अगाज छो यू बसंत को,
कती स्वांणा फूल खिली ग्येना।
यू फूल छो मेंतें सबसे प्यारो,
जू मेंतें बालपन याद दिलाणू छो।
अब सूखीगें दॄवी डावा हमारा,
जनि फाल्गुन को रस कखी हरची गेनी।
गौं की पुराणीं यादा,
बस यादू मा ही बच गेनी।
इस Blog की सभी कविताएँ स्वरचित है, यदि आप कोई भी हिन्दी या गढवाली कविता का उपयोग करना चाहते हैं तो हमारी अनुमती अवश्यक है। इस Garhwali रचना को पढने के लिए धन्यवाद। Garhwali, Uttarakhand में बोली जाने बाली एक बोली है, जोकी हिन्दी की तरहा ही लिखि व पढी जाती है।